Thursday 26 November 2015

10 देश जिन्हें माना जाता है महिलाओं के लिए 'असहिष्णु

दुनिया के लगभग हर कोने की महिलाएं किसी ना किसी तरह से प्रताड़ना का शिकार होती रहती है। इसको रोकने के लिए हर जगह की सरकार, लोग, गैर सरकारी संगठन काम करते हैं पर, यह कितना कम हो रहा है इसकी सच्चाई रोज आने वाली खबरें सामने ला देती हैं। दुनियाभर में महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों को रोकने के लिए संयुक्त राष्ट्र ने भी एक कदम उठाया हुआ है। इसमें 25 नवंबर को 'महिलाओं के विरुद्ध हिंसा खत्म करने वाला दिन' घोषित किया गया है। इस दिन पूरी दुनिया में रेप, घरेलू हिंसा और अन्य हिंसा से शिकार होने वाली महिलाओं के प्रति जागरुकता फैलाने की कोशिश की जाती है।

पर, कौन क्या काम कर रहा है हम इसपर ना जाते हुए आपको बताते हैं 10 ऐसे देशों के बारे में जहां महिलाओं के खिलाफ अत्याचार बढ़ता जा रहा है, या यूं कहें कि चरम सीमा पर है। यह लिस्ट थॉम्पसन रॉयटर्स फाउंडेशन, वर्ल्ड रिपोर्ट 2014 और फाउंडेशन फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट की ओर से जुटाए गए आंकडों के आधार पर तैयार की गई है।

10. ब्राजील

कुछ मामले में तारीफ हासिल करने के बावजूद ब्राजील के कुछ आंकड़े हैरान करते हैं। रिपोर्ट्स के मुताबिक, हर 15 सेकंड में एक महिला के ऊपर हमला होता है। हर दो घंटे में एक महिला की हत्या भी की जाती है।

9. मेक्सिको

2010-11 में 4,000 महिलाओं के गायब होने की खबर मेक्सिको में सामने आई थी। 2012 में प्रति एक लाख आबादी पर एक मर्डर भी दर्ज किया गया था। मेक्सिको का लीगल सिस्टम महिलाओं को घरेलू और यौन उत्पीड़न से पूरी तरह सुरक्षित नहीं करता। भले ही देश में यौन उत्पीड़न के लिए सजा का प्रावधान है, लेकिन ऐसा माना जाता है कि कोर्ट पुरुषों को उचित सदा नहीं देती।

8. केन्या

केन्या की बड़ी आबादी खेती पर निर्भर है। लेकिन परिवार में महिलाओं को आय का हिस्सा नहीं मिलता। देश में महिलाओं में एचआईवी रेट्स के आंकड़े भी पुरुषों के मुकाबले अधिक हैं। इसकी पीछे वजह बताई जाती है कि सेक्स लाइफ के ऊपर महिलाओं का पूरा कंट्रोल नहीं होता।

7. इजिप्ट

इजिप्ट में महिलाओं के यौन उत्पीड़न की घटना इतनी ज्यादा होती है कि कोई सामान्य विजिटर भी इसे महसूस कर सकता है। 2011 के इजिप्ट क्रांति के साथ-साथ महिलाओं के खिलाफ अपराध में इजाफा हुआ है। इजिप्ट के अदालत में महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा के मामले भी आसानी से स्वीकार नहीं किए जाते। शादी, तलाक, चाइल्ड कस्टडी और पारिवारिक संपत्ति के मामले में भी इजिप्ट में महिलाओं को उचित हक नहीं मिलते। एक रिपोर्ट के मुताबिक, जनवरी 2011 में इजिप्ट में भीड़ द्वारा 19 यौन उत्पीड़न के मामले सामने आए।

6. कोलंबिया

एक रिपोर्ट के मुताबिक, सिर्फ 2010 में कोलंबिया की 45,000 महिलाएं घरेलू हिंसा की शिकार हुईं। घरेलू हिंसा की शिकार हुई महिलाओं को आखिर में न्याय भी ठीक से नहीं मिलता। कुछ संस्थाएं महिलाओं के फ्रीडम और इंसाफ के लिए काम करती हैं, लेकिन उससे स्थिति बहुत बेहतर नहीं हुई है।

5. सोमालिया

रेप, फीमेल जेनिटल म्यूटिलेशन, बाल विवाह, शादी के बाद मृत्यु जैसी समस्याओं से सोमालिया जूझ रहा है। देश की 95 फीसदी महिलाएं फीमेल जेनिटल म्यूटिलेशन से गुजरती हैं। 4 से 11 साल की उम्र में उनका जेनिटल म्यूटिलेशन किया जाता है। सिर्फ 9 फीसदी महिलाएं हेल्दी कंडिशन में बच्चे को जन्म देती है।

4. भारत

दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र होने के बावजूद भारत में महिलाओं की स्थिति बेहतर नहीं है। न्यूयॉर्क टाइम्स के एक लेख के मुताबिक, पिछले 30 सालों में गर्भ में ही मार दिए गए लड़कियों की संख्या कई लाख है। इसकी वजह से देश में महिला और पुरुष का अनुपात भी बढ़ गया है। दूर-दराज के इलाकों के अलावा बड़े शहरों में भी महिलाओं के साथ गैंग रेप और रेप की घटनाएं अक्सर सामने आती हैं। बाल विवाह भी पूरी तरह से खत्म नहीं हुआ है। हफिंगटन पोस्ट की एक रिपोर्ट के मुताबिक, हर रोज औसतन 670 महिलाएं भारत में सेक्शुअल हरैसमेंट की शिकार होती हैं। अगर हरैसमेंट, रेप और महिलाओं की हत्या के मामलों को जोड़ दिया जाए तो ये आंकड़ा हर दिन औसतन 848 का हो जाता है। सिर्फ 2013 में देश में 34,000 महिलाओं के साथ रेप किया गया। जबकि कई महिलाओं को तो सीधे ट्रैफिकर्स को बेच दिया जाता है। भारत की राजधानी दिल्ली में महिलाओं के साथ होने वाले अपराधों की संख्या देश के औसत से करीब तीन गुना पहुंच जाता है।


3. पाकिस्तान

पाकिस्तान में कुछ संस्कृति और धार्मिक मान्यताएं महिलाओं के खिलाफ है। इसकी वजह से महिलाओं को न सिर्फ धमकियां मिलती हैं, बल्कि बाल विवाह और जबरन विवाह भी किया जाता है। कई जगहों पर महिलाओं के ऊपर पत्थर मारने और एसिड अटैक की घटनाएं भी सामने आती रही हैं। पाकिस्तान के ह्यूमन राइट कमिशन के मुताबिक हर साल करीब 1,000 लड़कियों की इज्जत के नाम पर हत्या कर दी जाती है और करीब 90 फीसदी पाकिस्तानी महिलाएं घरेलू हिंसा की शिकार होती हैं।


2. डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कॉन्गो

कॉन्गो को जेंडर वॉयलेंस के लिए सबसे खराब देशों में एक कहा जाता है। अमेरिकन जर्नल ऑफ पब्लिक हेल्थ के मुताबिक, हर दिन 1150 औरतों का यहां रेप किया जाता है। देश में महिलाओं के स्वास्थ्य का हाल भी बेहद बुरा है। करीब 57 फीसदी प्रेग्नेंट महिलाएं एनिमिया से पीड़ित रहती हैं।

1. अफगानिस्तान

अफगानिस्तान को महिलाओं के साथ होने वाले अपराध में सबसे ऊपर रखा जाता है। यहां निरक्षर महिलाओं की संख्या 87 फीसदी है। जबकि 70 से 80 फीसदी महिलाओं की जबरन शादी की जाती है। 54 फीसदी महिलाओं की शादी 15 से 19 की उम्र में ही हो जाती है। इसके अलावा भारी संख्या में महिलाएं घरेलू हिंसा की शिकार भी होती हैं।

Sunday 15 November 2015

PMO से दरख्वास्त - खत्म की जाए IAS लॉबी

सीनियर गवर्नमेंट पोस्ट पर IAS के प्रभुत्व को खत्म करने के लिए बाकी ग्रुप ए सविर्सेज ने एक याचिका दायर की है। इसमें उन्होंने कहा है कि प्रधानमंत्री कार्यालय में साल 1995 के बाद से IAS लॉबी का दबदबा रहा है। इसके साथ उन्होंने कहा कि ज्वॉइंट सेक्रेट्री पदों पर सबसे ज्यादा भर्तियां IAS से होती हैं। 

IAS की भर्ती को अच्छे ग्रेड की वजह से हरी झंडी मिल जाती है, जिससे ग्रुप ए की बाकी सेवाओं के कर्मचारियों के साथ पक्षपात होता है। सरकारी पदों में IAS का दबदबा ज्वाइंट सेक्रेट्री पद से ही देखने को मिल जाता है। साल 1972 में सेक्रेट्री की 45 पोस्ट्स में 30 IAS अधिकारी से थे। जबकि 15 अन्य ग्रुप ए सर्विसेज से शामिल किए गए थे। वहीं, साल 1984 में 36 IAS और 25 अन्य ग्रुप ए सर्विसेज से थे।

बाकी ग्रुप ए सर्विसेज को आस

अन्य ग्रुप ए सर्विसेज उम्मीद है कि प्रधानमंत्री कार्यालय के स्पेशलाइजेशन को ज्यादा जोर देने पर यह दबदबा खत्म हो सकेगा। 36 अन्य ग्रुप ए सर्विसेज ने एक याचिका में 7वें वेतन आयोग को IAS के प्रभुत्व को खत्म करने और मेरिट को एक मौका देने के लिए कहा है।

कायम रही लॉबी


भारत सरकार के टॉप पोस्ट में IAS का प्रभुत्व आजादी के बाद घटा, लेकिन 1995 के बाद IAS लॉबी ने दोबारा अपने दबदबे को कायम करते हुए 92 सेक्रेट्री की पोट्स में 71 पोस्ट हासिल की।

ये था कारण

सरकारी विभागों में IAS के प्रभुत्व का कारण लिस्ट में नाम लिखने वालों और सेलेक्शन अथॉरिटीज का था। यहां तक कि डिपार्टमेंट ऑफ पर्सनल एंड ट्रेनिंग (DoPT) और कैबिनेट सेकेट्रिएट पर भी IAS अफसरों का प्रभुत्व का था।

IAS के दिन बहुरे

बीते दशकों में IAS अधिकारियों के लिए हालात अच्छे हुए हैं। केंद्र सरकार में अभी 91 सेक्रेट्री पोस्ट पर 73 IAS से हैं। 11 साइंटिस्ट हैं और बाकी के सात अन्य ग्रुप ए सेवाओं से हैं। इनमें IPS, IRS, IAAS या IRAS शामिल हैं।

JS से दबदबे की शुरुआत

IAS के प्रभुत्व की शुरुआत सीधे ज्वॉइंट सेकेट्री (JS) लेवल से होती है। ग्रुप ए सेवाओं की 7वें वेतन आयोग को सौंपी गई याचिका के मुताबिक वर्तमान में लगभग 75 फीसदी ज्वाइंट सेक्रेट्री, 85 फीसदी एडिशनल सेक्रेट्रीज और 90 फीसदी से ज्यादा सेक्रेट्रीज IAS से शामिल किए गए हैं।

इंजीनियर-डॉक्टर भी हिस्सा

साल दर साल नौकरशाही के हालात में तब्दीलियां हुई हैं। अब, ज्यादातर इंजीनियर, डॉक्टर और MBA ऑल इंडिया सर्विसेज (IAS, IPS और IFS) और अन्य ग्रुप ए सर्विसेज में शामिल हो रहे हैं। IAS  के लिए कोई अलग से परीक्षा नहीं होती है। जिनका भी ज्यादा ग्रेड होता है, उन्हें इस सेवा में शामिल किया जाता है।

PMO का टैलेंट पर जोर 

प्रधानमंत्री कार्यालय से मिली प्रतिक्रिया के आधार पर सूत्रों ने बताया कि पीएमओ सभी सेवाओं में बराबरी पर जोर देगा और सीनियर पोस्ट के लिए टैलेंट को प्राथमिकता देगा। पीएमओ ने DoPT को सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है कि ग्रुप ए सेवाओं के सभी अफसरों को समय रहते लिस्ट में शामिल किया जाए।

Tuesday 10 November 2015

शायद बिहार में नीतीश और लालू यादव के ऐसे अच्छे दिन न आये होते !

दिल्ली में नरेन्द्र मोदी के कौशल की पहली परीक्षा अब है! उनके राजनीतिक जीवन की शायद अब तक की सबसे बड़ी चुनौती उनके सामने है! और शायद पहली भी! इस मामले में मोदी वाक़ई भाग्यशाली रहे हैं. मुझे नहीं याद पड़ता कि इससे पहले कभी उनके सामने कोई चुनौती आयी भी हो!

गुजरात दंगों को लेकर वह संकट में ज़रूर घिरे थे. लेकिन वह कोई राजनीतिक चुनौती नहीं थी, जिससे उन्हें निबटना हो. तब पार्टी के 'लौहपुरुष' ने रक्षा कवच बन कर उन्हें बचा लिया था! उसके बाद से तो कभी उनके सामने कोई मामूली-सा संकट भी नहीं आया. गुजरात में वह जब तक रहे, चक्रवर्ती सम्राट की तरह रहे. अजेय! शत्रु तो दूर, उनकी मर्ज़ी के बिना कहीं कोई पत्ता भी नहीं खड़क सकता था. तो फिर चुनौती भला कहाँ से आती? ऐसा कोई दरवाज़ा कहीं खुला छूटा ही नहीं था!

अहमदाबाद और दिल्ली का फ़र्क़!

लोकसभा चुनाव भी उन्होंने आराम-से जीत लिया. जनता काँग्रेस से पक चुकी थी. मोदी के पास विकास के बड़े-बड़े आलीशान, मनोहारी प्रोजेक्ट थे, सपनों के परीलोक थे, जादुई चिराग़ों की मोहिनी दमक थी. जनता ने उन्हें चुन लिया. अब वह सारे विपक्ष को बौना और मरघिल्ला कर चुके थे. दूर-दूर तक फिर कोई चुनौती नहीं दिख रही थी! सब कुछ कंट्रोल में था! पूरी दुनिया 'नसीबवाले' का लोहा मान रही थी!

लेकिन अहमदाबाद और दिल्ली में बड़ा फ़र्क़ है, यह दिल्ली में अरविन्द केजरीवाल ने नौ महीने में ही बता दिया. उस हार को किसी ने चुनौती माना ही नहीं. लेकिन उसके नौ महीने बाद अब बिहार में मिली वैसी ही करारी हार को वही अनदेखा करेगा, जो या तो मूर्ख राजनीतिक हो या अहंकार में अन्धा! तब शायद नीतीश-लालू के 'अच्छे दिन' नहीं आये होते! मोदी अहंकारी तो हैं, लेकिन उनसे ऐसी मूर्खता की उम्मीद नहीं कि उन्हें राजनीति की ज़मीनी सच्चाइयाँ दिखना बन्द हो जायें! वैसे उन्हें शायद अब एहसास हो रहा हो कि दिल्ली में 'रामज़ादे बनाम हरामज़ादे' का नतीजा देख लेने के बाद अगर उन्होंने चाबुक कस दी होती तो शायद बिहार में नीतीश और लालू यादव के ऐसे अच्छे दिन न आये होते!

मोदी हैं तो बड़े समझदार! क़ायदे से तो उन्हें तभी पढ़ लेना चाहिए था कि देश की जनता को 'रामज़ादे' जैसे मुहावरे नहीं चाहिए. अब यह पता नहीं कि वह पढ़ नहीं पाये या पढ़ कर भी कुछ कर नहीं पाये! क्योंकि तब से लगातार वह मुहावरे जारी हैं और हर तरफ़ से बार-बार कोंचे जाने के बावजूद मोदी कभी टस से मस नहीं हुए! तो कुछ तो बात ज़रूर होगी!

मोदी क्या घृणा-भोंपुओं को बन्द करा पायेंगे?

तो अब बिहार की हार (Bihar Election 2015) के बाद मोदी की सबसे पहली चुनौती यही है कि क्या वह घृणा-भोंपुओं को बन्द करा पायेंगे? संघ और 'परिवार' क्या अपने एजेंडे को ठंडे बस्ते में डालेगा? मुश्किल लगता है! क्यों? आगे देखेंगे.

नरेन्द्र मोदी की दूसरी बड़ी चुनौती है उनकी अपनी ख़ुद की पैकेजिंग, ब्राँड मोदी, जिसने लोगों के मन में करिश्माई उम्मीदें पैदा कीं और इसीलिए लोगों को अब लगता है कि वे बुरी तरह ठगे गये हैं! मोदी अब कह रहे हैं कि विकास कोई फ़र्राटा दौड़ नहीं, बल्कि लम्बी मैराथन है. धीरे-धीरे होगा, समय लगेगा. लेकिन सच यह है कि मोदी जी ने उम्मीद तो 'फ़ार्मूला वन' जैसी रफ़्तार वाले विकास की जगायी थी. विकास का चक्का तो अभी जाम है. अब मोदी कैसे इसको गति दे पाते हैं और कैसे लोगों को समझा पाते हैं कि वे बेवक़ूफ़ नहीं बनाये गये हैं, यह वाक़ई एक कठिन और गम्भीर चुनौती है. इसे तो उन्हें तुरन्त हाथ में लेना होगा!

अहंकार और अड़ियल ज़िद्दीपन

लेकिन यह होगा कैसे? बिहार के बाद विपक्ष का हौसला तो बढ़ चुका है. उसे साथ लिये बिना बहुत-से क़ानून अटके पड़े रहेंगे. नरेन्द्र मोदी को अपना अहंकार छोड़ना होगा. राहुल गाँधी उन्हें पहले ही यह नसीहत दे चुके हैं!

बात सिर्फ़ अहंकार की ही नहीं, ज़िद्दीपन की भी है. मोदी को समझना चाहिए कि कई छोटी-छोटी बातें मिल कर बहुत बड़ी हो जाती हैं. वैसे ही, जैसे बूँद-बूँद से सागर भरता है. तीस्ता सीतलवाड और ग्रीनपीस से किस तरह और क्यों खुन्दक निकाली जा रही है, यह जनता समझती है और वह यह भी समझती है कि यह वह 'गवर्नेन्स' नहीं है, जिसकी शान में मोदी रोज़ क़सीदे पढ़ते हैं. लोगों को यह बात भी चुभती है जब न्यायपालिका को सरकारी घुट्टी पिलाये जाने की कोशिशें होती हैं. पहले तो कभी न्यायपालिका से ऐसी भाषा में संवाद नहीं किया गया! तो अगली चुनौती यह है कि क्या यह अड़ियल ज़िद की संस्कृति बदलेगी?

पार्टी में भी बढ़ सकती हैं चुनौतियाँ

राजनीतिक मोर्चे पर भी चुनौतियाँ कम नहीं हैं. अब तक अमित शाह के रूप में पार्टी पर नरेन्द्र मोदी की पूरी पकड़ थी. अमित शाह को धुरन्धर चुनाव-विजेता रणनीतिकार के तौर पर पेश किया गया था. शुरू के चुनाव उन्होंने जीते भी. लेकिन दिल्ली और बिहार के दो चुनाव लगातार बुरी तरह हारने के बाद उन पर सवाल उठेंगे ही. अगले साल बीजेपी के नये अध्यक्ष का चुनाव होना है. क्या अमित शाह को दूसरी बार यह कुर्सी मिलेगी या पार्टी को कोई नया अध्यक्ष मिलेगा, यह बड़ा सवाल है.

फिर अगले साल असम और पश्चिम बंगाल में चुनाव होने हैं. असम में तो काँग्रेस की लुँजपुँज हालत के कारण बीजेपी के लिए लड़ाई शायद उतनी कठिन न हो, लेकिन अब इसकी उम्मीद कम है कि पश्चिम बंगाल में बीजेपी कोई प्रभावी प्रदर्शन कर सकती है.

विकास का एजेंडा या संघ का एजेंडा?

दिक़्क़त यह है कि विकास की कोई रुपहली कहानी अभी है नहीं और शायद जल्दी हो भी न. विदेशी निवेशकों ने भी मोदी से जिस तेज़ी की उम्मीद लगायी थी, उसका कहीं अता-पता नहीं है. धार्मिक असहिष्णुता से लगातार कसैले हुए माहौल से बिदक कर कुछ निवेशक तो यहाँ से पैसा निकाल कर ही जा चुके हैं, जो आने को सोच रहे थे, वह फ़िलहाल हालात का जायज़ा ले रहे हैं. विपक्ष के असहयोग, ख़राब घरेलू हालात और दुनिया भर में डगमग अर्थव्यवस्था के कारण यहाँ विकास कैसे रफ़्तार पकड़े, यह बड़ा सवाल है.

उधर संघ के अपने लक्ष्य हैं. उसकी अपनी टाइमलाइन है. अस्सी के दशक में उसने राम जन्मभूमि आन्दोलन के ज़रिये हिन्दुत्ववाद को देश की राजनीति के केन्द्र में पहुँचाया था. संघ के हिसाब से अब समय इसे और आगे ले जाने का है. संघ की रणनीति इस बार अलग है. कोई बड़ा आन्दोलन कर पूरी ताक़त उसमें झोंकने और दुनिया का ध्यान उस ओर आकर्षित करने के बजाय संघ अब बहुत छोटे-छोटे मुद्दों से स्थानीय स्तरों पर हिन्दुत्व की चिनगारी धीरे-धीरे सुलगाये रखना चाहता है. पिछले अठारह महीनों में यही हुआ है. 'लव जिहाद' और घर-वापसी के बाद गोमांस का मुद्दा इसी रणनीति के तहत उछला है. सवाल यह है कि क्या संघ अब बिहार की हार से सबक़ लेकर अपने अभियान को रोक देगा? मुझे तो नहीं लगता!

Monday 9 November 2015

वर्ल्ड बैंक की रिपोर्टः अगले 15 साल में होंगे 10 करोड़ लोग गरीब

अगले 15 सालों में गरीबों की संख्या 10 करोड़ और बढ़ जाएगी। वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट में ये कहा गया है। क्लाइमेट चेंज इसकी मुख्य वजह होगी। रिपोर्ट में बताया गया कि ग्लोबल वार्मिंग और उसके प्रभाव के कारण गरीबी खत्म करना बहुत मुश्किल है।

वल्ड बैंक के प्रेसिडेंट जिम योंग किम ने कहा कि क्लाइमेट चेंज सबसे ज्यादा गरीबों को प्रभावित करती है। हमारा लिए लाखों लोगों को गरीबी से बचाना एक चुनौती है। रिपोर्ट में बताया गया कि गरीब अमीरों के मुकाबले क्लाइमेट में आ रहे बदलाव के चपेट में जल्दी आ जाते है। उनके पास अच्छे से बना घर नहीं होता। क्लाइमेट चेंज का जमीनों पर बुरा असर पड़ता है। सबसे बड़ी बात ये है कि इन्हें लॉस का कोई रिफंड नहीं मिलता है।

अभी से लेकर 2030 तक अगर कुछ नीतियां अपनाई जाएं तो ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव को कम किया जा सकता है। रिपोर्ट में बताया गया कि 2030 तक ग्लोबल वार्मिंग इतना बढ़ जाएगा कि लोग बर्दाश्त नहीं कर पाएंगे।

यह रिपोर्ट 30 नवंबर से 11 दिसंबर तक चलने वाले यूएन क्लाइमेट समिट में पेश किया जाएगा। समिट में ग्लोबल वार्मिंग की नई चुनौतियों पर चर्चा होगी।

Thursday 5 November 2015

17 साल की उम्र में हासिल की दो डिग्रियां

कैलिफोर्निया के 17 साल के मोशे काई कावलीन के पास दो डिग्रियां हैं। कावलीन ने 11 साल की उम्र में कम्युनिटी कॉलेज से ग्रेजुएशन किया था। उसके बाद 15 साल की उम्र में लॉस एंजिल्स के यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया से मैथ में बैचलर्स की डिग्री हासिल की।

इस साल उन्होंने ब्रांडेस यूनिवर्सिटी से साइबर सिक्योरिटी में मास्टर्स करने के लिए ऑनलाइन क्लासेज लेना भी शुरू कर दिया है। इसके अलावा उन्होंने एक किताब भी लिखी है। इसमें उन्होंने अपने एक्सपीरियंस शेयर किए हैं। किताब में उन्होंने दूसरों से सुनी कहानियों को भी शामिल किया है। कावलीन का कहना है कि वह इस साल के आखिर तक पायलट का लाइसेंस लेने के लिए भी प्लान बना रहा है।

कावलीन की मां ताईवान और पापा ब्राज़ील से है। इनका कहना है कि कावलीन ने पढ़ाई बहुत जल्दी पूरी कर ली। वहीं कावलीन कहता है, 'मैं बहुत साधारण हूं। मेरा केस कोई खास नहीं है। यह बस पेरेंटिंग, मोटिवेशन और इंसपिरेशन का कॉम्बिनेशन है। एडवर्ड्स में नासा के आर्मस्ट्रांग फ्लाइट रिसर्च सेंटर में काम करने के दौरान मैं अपने आप को लोगों से कमपेयर करने लगा हूं। मैं कोशिश करता हूं कि अपना बेस्ट दूं'।

मैथ्स के प्रोफेसर डैनियल जज कहते हैं, 'मुझे लगता है ज्यादातर लोग सोचते हैं कि कावलीन जीनियस है। यह स्वाभाविक रूप से आता है। उन्होंने कहा कि वास्तव में उसने बहुत मेहनत की है। शायद ही किसी स्टूडेंट ने इतनी मेहनत की हो'।

कावलीन ने बताया, 'मुझे विश्वास नहीं हुआ कि जिस नासा ने उम्र की वजह से मुझे रिजेक्ट किया था उसने मुझे काम करने को बुलाया है'। नासा में कावलीन के बॉस और मेंटर अर्टीगाल का कहना है कि उनके प्रोजेक्ट के लिए कावलीन बिल्कुल परफेक्ट है। उन्हें एक ऐसे इंटर्न की जरूरत थी जिसे सॉफ्टवेयर मैथ्स अलॉगरिदम की समझ हो, साथ ही एक पायलट की जरूरत भी थी।

अर्टीगाल कहते है कि ऑफिस में वह बहुत शांत तरीके से काम करते हैं और उनके पास बहुत अचछा ह्यूमर है। ब्रांडैस यूनिवर्सिटी से मास्टर्स करने के बाद वह मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में बिजनेस में मास्टर करना चाहते है। वह साइबर सिक्योरिटी कंपनी भी शुरू करना चाहते है। फिलहाल वह अभी अपने 18वें जन्मदिन का इंतजार कर रहे है ताकि वह ड्राइवर का लाइसेंस हासिल कर पाए।

शेर तो शेर होता है, उसका कोई धर्म नहीं होता

क्या ऐसा हो सकता है कि अंडरवर्ल्ड का कोई धर्म हो और वे पैसे की वसूली से लेकर खून तक करने के पहले धर्म देखते हों?  किसी डॉन के बारे में सुना है कि वह अपने धर्म के लोगों को नहीं मारता हो और दूसरे धर्म के लोगों से दुश्मनी मोल लेता हो? ऐसा शायद कल्पना या फिल्मों में हो सकता है। डॉन या बड़े अपराधी का धर्म से कोई लेना-देना नहीं होता और वे पैसे के मामले में किसी के नहीं होते। मंदिर या मस्जिद से उनका नाता सिर्फ रस्मी होता है। कोई डॉन मंदिर में इसलिए मत्था टेकता है कि वह हिन्दू धर्म से जुड़ा है तो कोई मस्जिद में नमाज़ इसलिए पढ़ता है कि वह मुसलमान है और इस तरह से वह अपने अनुयायियों की तादाद बढ़ा सकता है। धर्म या मज़हब उनके लिए महज आस्था का सवाल है और उससे वे जुड़े हुए हैं।

अब अंडरवर्ल्ड डॉन छोटा राजन की गिरफ्तारी के बाद कई नेता और धर्म के ठेकेदार उसे हिन्दू धर्म का समर्थक बता रहे हैं और कह रहे हैं कि वह हिन्दू रक्षक है। साध्वी प्राची कह रही हैं कि वह हिंदू शेर है और वह आतंकवाद के खिलाफ लड़ा। उसे मौका मिले तो पाकिस्तान में छिपे दाऊद की गर्दन पकड़ सकता है। ऐसा लगता है कि साध्वी और उन जैसे लोगों को यह पता नहीं कि छोटा राजन ही दरअसल वह मुजरिम है जिसने दाऊद इब्राहिम के पैर पसारने में मदद की थी। उसकी लोमड़ी जैसी बुद्धि और शूटर्स के गिरोह ने दाऊद को मुंबई में ताकत दी थी। ऐसी दलील देने वालों को यह भी मालूम नहीं है कि छोटा राजन दाऊद इब्राहिम का जिसे आतंकवादी बताया जाता है, दायां हाथ था। वह उसके सभी गुनाहों का साथी था और खुले आम वसूली करता था। उस पर मुंबई में 17 लोगों की हत्या का आरोप है जिसमें ज्यादातर हिन्दू ही थे। पत्रकार जे डे की हत्या राजन ने ही करवाई थी, यह बात सभी जानते हैं। ऐसे न जाने कितने नाम हैं।

छोटा राजन तो 1989 में दाऊद के पास दुबई चला गया था जहां दोनों में काफी मतभेद हो गए और वे एक दूसरे के खून के प्यासे हो गए। उसके बाद से राजन का रास्ता बदल गया लेकिन उसने अपराध और वसूली का काम नहीं छोड़ा। अगर वह देशभक्त या धर्म प्रेमी होता तो भारत आकर सरेंडर कर देता। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। वह बाहर के देशों से ऑपरेट करता रहा और अपराध का अपना साम्राज्य चलाता रहा।

ऐसा सिर्फ हमारे देश में हो सकता है कि धर्म के आधार पर किसी माफिया डॉन को महिमा मंडित किया जाए। सिर्फ इसलिए कि वह हिन्दू है और दाऊद के गुर्गों को मरवाने में बड़ी भूमिका निभाई, उसे देशभक्त या महान नहीं कहा जा सकता है। यह तो देशभक्ति का अपमान होगा। एक बड़ा अपराधी कई तरह के रंग बदलता है और लोग उससे धोखा खा जाते हैं। इस मामले में भी ऐसा हो रहा है। अपराधी का धर्म उसके चरित्र से जुड़ा नहीं होता। वैसे भी शेरों का कोई धर्म नहीं होता और शेर महज शेर होता है। उसे हिन्दू या मुसलमान की श्रेणी में डालना हास्यास्पद है।

Tuesday 3 November 2015

भारत की चीन को चुनौती, दक्षिण चीन सागर में भेजेंगे शिप

अमेरिका के बाद अब भारत ने चीन की तानाशाही को चुनौती दी है। भारत ने कहा है कि हम भी दक्षिण चीन सागर में अपने जहाज भेजेंगे। साथ ही भारत समुद्र के ऊपर उड़ान भरने के लिए भी आजाद है।

भारत का कहना है कि वह इलाका 'फ्रीडम ऑफ नेविगेशन' के दायरे में आता है। अगर इस इलाके पर विवाद है तो उसका हल इंटरनेशनल कानून के दायरे में किया जाए। अमेरिका ने पिछले हफ्ते दक्षिण चीन सागर में अपना जहाज भेजा था। चीन ने इस पर ऐतराज जताया था। उसने अमेरिकी जहाज का पीछा भी किया था।

ऐसा पहली बार है कि जब विवादित दक्षिण चीन सागर के मामले में भारत ने इतना सख्त रवैया अपनाया है। बता दें कि भारत का 55 फीसदी समुद्री कारोबार इसी रास्ते से होता है। 

भारतीय अफसरों ने बताया कि हाल ही में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की फिलीपींस के फॉरेन मिनिस्टर अल्बर्ट एफडे रोसारियो के साथ मीटिंग हुई थी। भारत ने फिलीपींस से वादा किया कि वह दक्षिण चीन सागर को पश्चिम फिलीपींस सागर के नाम से बुलाएगा।

क्यों है विवाद-

दक्षिण चीन सागर पर चीन 12 समुद्री मील इलाके पर अपना हक जताता है। इस इलाके को ‘12 नॉटिकल मील टेरिटोरियल लिमिट' कहते हैं। यह इलाका दक्षिण चीन सागर में बने आर्टिफीशियल आइलैंड के आसपास का ही है। चीन के अलावा दक्षिण-पूर्व एशिया के कई देश (ताइवान, फिलीपींस, वियतनाम और मलेशिया) भी इस इलाके पर अपना दावा करते हैं। पिछले महीने अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के साथ मीटिंग में चीनी प्रेसिडेंट शी जिनपिंग ने कहा था कि वे इस इलाके में सेना तैनात नहीं करना चाहते। हालांकि, अमेरिका को लगता है कि चीन यहां मिलिट्री एक्टिविटीज बढ़ा रहा है। इसलिए वह इस इलाके में आवाजाही कर रहा है।

असहिष्णुता के खिलाफ राष्ट्रपति से मिलने पैदल पहुंची कांग्रेस

देश में 'बढ़ती असहिष्णुता' के मसले पर कांग्रेस ने मंगलवार को संसद से राष्ट्रपति भवन तक पैदल मार्च निकाला। पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी और उपाध्यक्ष राहुल गांधी की अगुवाई में यह मार्च संसद की गांधी प्रतिमा से शुरू हुआ। कड़ी सुरक्षा में निकाले गए मार्च में शामिल पूर्व पीएम मनमोहन सिंह और कई सीनियर कांग्रेसी नेताओं ने हाथों मोदी सरकार के खिलाफ नारे लिखे हुए तख्ती ले रखा था।

कांग्रेस ने पहले महात्मा गांधी को गोली मारे जाने वाली जगह से मार्च निकालने की इजाजत मांगी थी। दिल्ली पुलिस ने सुरक्षा का हवाला देते हुए इसकी इजाजत नहीं दी थी।

कांग्रेस के 11 बड़े नेताओं का प्रतिनिधिमंडल ने राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से मुलाकात कर एक ज्ञापन सौंपा। इन नेताओं में सोनिया, राहुल के अलावा लोकसभा में नेता विपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद भी शामिल थे। ज्ञापन में कहा गया है कि देश में असहिष्णुता का माहौल खत्म करने के लिए राष्ट्रपति अपने संवैधानिक अधिकारों का इस्तेमाल करें।

सोनिया गांधी ने सोमवार को भी राष्ट्रपति से मुलाकात की थी। सोनिया ने उन्हें बताया था कि कांग्रेस के नेता एक मार्च निकालकर उनसे इसलिए मिलना चाहते हैं। उन्होंने कहा था कि देश में सामाजिक और सांप्रदायिक तनाव पैदा करने की मुहिम चलाई जा रही है।

कथित असहिष्णुता के मसले पर कांग्रेस बेहद आक्रामक रवैया अपनाने वाली है। संसद के शीतकालीन सत्र में भी पार्टी इस मामले पर मोदी सरकार को घेरेगी।

कांग्रेस नेताओं का मानना है कि इस मार्च से बिहार में 5 नवंबर को होने वाले आखिरी चरण के मतदान पर भी असर पड़ेगा। इसका महागठबंधन को फायदा हो सकता है। बिहार चुनाव के इस चरण में मुस्लिम बहुल इलाकों कटिहार, पूर्णियां, किशनगंज और अररिया यानी सीमांचल में मतदान होने वाला है।

कांग्रेस के पैदल मार्च पर भाजपा ने जमकर निशाना साधा है। उसके प्रवक्ता संबित पात्रा ने कहा कि एक तरफ भारत आगे बढ़ रहा है, लेकिन सोनिया गांधी कुंठा में मार्च कर रहीं हैं। उन्होंने कहा कि कांग्रेस का विरोध मार्च कुंठा का मार्च है। कांग्रेस के लोग जब भी सत्ता से बाहर होते हैं तो कुंठित हो जाते हैं।

इसपर जवाब देते हुए कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद ने कहा कि यह विरोध नहीं, देश की आत्मा की पीड़ा है। लेकिन यह सरकार अंधी, बहरी और गूंगी है। मोदी सरकार को भूख, आंसू, पीड़ा समझ नहीं आती।

कांग्रेस का यह पैदल मार्च साहित्यकारों, कलाकारों, लेखकों और वैज्ञानिकों की ओर से अवार्ड वापसी के बाद हुआ है।

Monday 2 November 2015

'अवार्ड वापसी' के खिलाफ 'किताब वापसी अभियान' हुआ तेज

लेखकों के 'अवार्ड वापसी' करने के विरोध में 'किताब वापसी अभियान' तेज हो गया है। अभियान की शुरुआत में ही इससे हजारों लोग जुड़ गए हैं। यह अभियान साहित्यकारों और लेखकों के अवार्ड वापसी करने के समकक्ष शुरु किया गया है। इससे पहले साहित्यकारों ने कलबुर्गी हत्याकांड के विरोध और दादरी घटना के बाद केंद्र सरकार को घेरने के लिए पुरस्कार लौटाना शुरू किया था।

इस अभियान में कहा जा रहा है कि जिन लेखकों ने सम्मान लौटाया है उनकी किताबें अगर लोगों के पास हैं तो उन्हें लौटा दिया जाए। इसके पीछे तर्क दिया जा रहा है कि लेखक पुरस्कार लौटाकर राजनीति कर रहे हैं।

अभियान में उदय प्रकाश, अशोक वाजपेयी, कृष्णा सोबती, मंगलेश डबराल, जी एन देवी, नयनतारा सहगल, केकी दारुवाला, अनिल जोशी, वरियम सिंह संधु, सुरजीत पातर, जसविन्दर, गुरबचन भुल्लर, आतमजीत, बलदेव सिंह, दर्शन बत्तर, अजमेर सिंह औलख, मोहन भंडारी, प्रगट सिंह सतौज, नंद भारद्वाज, कुम वीरभद्रप्पा, रहमत तारिकी, गुलाम नबी ख्याल, मुनव्वर राना, सारा जोसेफ, होमेन बरगोहेन और कात्यानी विदमहे आदि के नाम शामिल हैं।

इस अभियान में कई लेखक, पत्रकार और सोशल एक्टिविस्ट जुड़ चुके हैं। इसमें से कुछ प्रमुख नाम हैं संजीव बेंगानी, सुरेश चिपलुणकर और अनिल पांडेय और आशीष कुमार अंशु। अभियान से जुड़े संजीव सिन्हा ने कहा कि सम्मान लौटानेवाले साहित्यकार राजनीति कर रहे हैं। वे देश का माहौल खराब कर रहे हैं और पूर्वाग्रह से ग्रस्त हैं।

सिन्हा ने कहा कि ये जन से कटे हुए लेखक हैं और जनादेश का असम्मान कर रहे हैं। इसलिए ऐसे साहित्यकार की किताब हम अपने पास नहीं रखना चाहते और उन्हें लौटा देना चाहते हैं।  मुहिम में लगे शिवानंद द्विवेदी सहर का कहना है कि जो साहित्यकार सम्मान वापस कर रहे हैं या वापसी का समर्थन कर रहे हैं उनकी किताबों को वापस करने को लेकर पाठक मन बना चुके हैं। किताब वापसी अभियान पाठकों का अभियान है।

अभियान के फेसबुक पेज पर जानकारी दी गई है कि साहित्य अकादमी पुरस्कार अब तक 1,110 लोगों को दिया गया है, जिसमें 536 लोग जीवित हैं। इनमें 26 साहित्यकारों ने अपना साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाया है। बाल साहित्य की श्रेणी में 144 लेखकों को पुरस्कृत किया गया। जिनमें 128 लेखक जीवित हैं। इसमें सिर्फ एक लेखक ने अपना पुरस्कार लौटाया है। अनुवाद में 500 लेखकों को सम्मानित किया गया है। सभी अनुवादक जीवित हैं। तीन लेखकों ने पुरस्कार लौटाया है।

युवा पुरस्कार 111 लेखकों दिया गया है। उनमें सिर्फ एक लेखक ने पुरस्कार लौटाने की सूचना ई-मेल के माध्यम से अकादमी को दी है। पुरस्कार लौटाया नहीं है। वैसे अकादमी ने सम्मान लौटाने वाले लेखकों को एक पत्र लिखा है, जिसमें उनसे यह आग्रह किया गया है कि वे अपने सम्मान वापसी पर पुनर्विचार करें।

खूबसूरती बढ़ाने के लिए लिया स्टूडेंट लोन

जहां स्टूडेंट लोन लेकर पैसे ट्यूशन फीस, किराया या और खर्चे निबटाते हैं, वहीं एक लड़की ने कुछ अलग ही कर दिखाया है। कैथरीन नाम की इस लड़की ने स्टूडेंट लोन लेकर सारा पैसा अपने ब्रेस्ट को शेप देने और बोटोक्स ट्रीटमेंट पर खर्च कर दिया। दूसरा चौंकाने वाला खुलासा यह है कि जब इसने लोन लिया, उस वक्त वह स्टूडेंट भी नहीं थी।

मॉडलिंग का शौक

द सन में छपी खबर के अनुसार 29 साल की कैथरीन नाम की इस महिला को
मॉडलिंग का शौक था। उसे सुंदर दिखने के लिए पैसों की जरूरत थी। पैसों का इंतजाम करने के लिए उसने 14,000 पाउंड का स्टूडेंट लोन ले लिया। इस पैसे से उसने अपनी खूबसूरती निखारने के लिए ब्रेस्ट और बट का साइज बढ़वाया। कैथरीन बताती है कि वे केट प्राइज की तरह मशहूर मॉडल बनना चाहती हैं।

इसके साथ एक और चौंकाने वाली बात यह है कि उसने एक ही कॉलेज में दो बार एडमिशन लेकर स्टूडेंट लोन लिया।

कैथरीन ने 22 की उम्र में यूनिवर्सिटी ऑफ ईस्ट लंदन में साइकोलॉजी कोर्स में दाखिला लिया था। उसने दाखिला पढ़ने के लिए नहीं, बल्कि स्‍टूडेंट लोन के लिए लिया था। जैसे ही लोन का पैसा उसके अकाउंट में आया, उसने कॉलेज जाना छोड़ दिया। क्लास ना लेने की वजह से वह फेल हो गई। इसके बाद यूनिवर्सिटी ने उसे दोबारा पढ़ने का चांस दिया, तो उसने फिर से लोन ले लिया।

डिग्री से ज्यादा काम आई प्लास्टिक सर्जरी

कैथरीन का मानना है कि उनका करियर बनाने में डिग्री से ज्यादा उनकी प्लास्टिक सर्जरी काम आई। कैथरीन ने कहा,' मेरा करियर ब्रेस्ट जॉब की वजह से सेट हुआ। मुझे लगता है कि युनिवर्सिटी में जाकर पढ़ने वाले बच्चों को जॉब्स नहीं मिलती और वे आखिर में सुपरमार्केट में काम करने को मजबूर हो जाते हैं।

कैथरीन बताती है कि वह बचपन से ही अपने छोटे ब्रेस्ट को लेकर परेशान रहती थीं। कैथरीन को प्लास्टिक सर्जरी का आइडिया एक दोस्त ने दिया था। इसके बाद उन्होंने दो बार ब्रेस्ट इंलार्जमेंट के अलावा बोटोक्स और कोलाजिन के लिए इंजेक्शन लगवाए। 

कैथरीन का मानना है कि बड़े ब्रेस्ट से उनका कॉन्फिडेंस लेवल लाख गुना बढ़ गया है। कैथरीन बताती है कि सर्जरी के बाद उनके बी कप वाले ब्रेस्ट के लिए अब डी कप ब्रा की जरूरत होती है।
ब्रेस्ट जॉब के बाद उसके पास बचे पैसे को उसने अपने लिप्स को बड़ा कराने के लिए यूज किया। इस काम में उसने लोन के 560 पाउंड लगाए।

नहीं चुकाना पड़ेगा लोन

यूनिवर्सिटी इस शर्त पर लोन देती है कि उसे स्टूडेंट तब वापस करेगा, जब एक साल में 17,000 पाउंड कमाने लगेगा। कैथरीन को यह इसलिए नहीं चुकाना पड़ेगा, क्योंकि वे साल में इतना पैसा कभी कमा ही नहीं पाएंगी।

राम का जन्म उत्तर पश्चिम भारत या पाकिस्तान में हुआ थाः किताब का दावा

राम का जन्म आज के अयोध्या में नहीं हुआ था। बल्कि राम की जन्मभूमि उत्तर पश्चिम भारत या फिर पाकिस्तान

राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद विवाद में AIMPLB भी एक पक्ष है। कुरैशी और फारुखी ने फैक्ट्स ऑफ अयोध्या एपिसोड (मिथ ऑफ राम जन्मभूमि) किताब लिखी है। इस किताब में दावा किया गया है कि वेदों या पुराणों में कहीं भी राम की जन्मभूमि गंगा के इलाके में नहीं बताया गया है। इनके अनुसार राम का जन्म सप्तसिंधु के इलाके में हुआ था। सप्तसिंधु हरियाणा और पंजाब, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के पूर्वी इलाकों तक फैला हुआ है। इसलिए अयोध्या राम की जन्मभूमि है ही नहीं।

हिंदू युग की गणनाओं के हिसाब से राम का जन्म त्रेता युग में हुआ था। रामायण के फैक्ट के आधार पर इसका कैलकुलेशन किया गया है। इस आधार पर 5561 ईसा पूर्व या फिर 7323 ईसा पूर्व में हुआ होगा। इस काल में अयोध्या और उत्तर प्रदेश के दूसरे इलाकों में मनुष्य ही नहीं थे। इन इलाकों में 600 ईसा पूर्व से मनुष्यों की आबादी की जानकारी है। किताब में ऐसे ही कई अन्य तथ्य दिए गए हैं और इसके आधार पर राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद है ही नहीं।

कुरैशी ने कहा है कि दरअसल ये विवाद ब्रिटिश शासन की देन है जिसपर हम लड़ रहे हैं। ब्रिटिश सरकार ने राम मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाने की झूठी अफवाह फैलाई थी। इसमें कोई सच्चाई नहीं है। इसे लेकर बोर्ड देशभर के हिंदू नेताओं से मिलेगा। बात-चीत से मामला सुलझ सकता है। इसके लिए लोगों को जागरुक करना जरूरी है। उन्होंने कहा कि हम कोर्ट के फैसले का सम्मान करते हैं। हमारा मकसद कोर्ट के फैसले को प्रभावित करने का नहीं है। हम केवल लोगों को सच बताना चाहते हैं। इस पर राजनीति नहीं होनी चाहिए।

किताब में मस्जिद निर्माण पर एक भी बात नहीं लिखी गई है। ये दावा है आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का। बोर्ड के असिस्टेंट जनरल सेक्रेटरी अब्दुल रहीम कुरैशी और कार्यकर्ता कमाल फारुखी ने एक किताब में इसका जिक्र किया है।

नेपाल के प्रधानमंत्री ने दी चेतावनी, 'हमारे घरेलू मामलों से दूर रहे भारत

भारत-नेपाल सीमा पर सोमवार को पैदा हुए ताजा तनाव के बीच नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने भारत को नेपाल के अंदरूनी मामलों में दखल नहीं देने की चेतावनी दी।

नेपाल के नए संविधान के खिलाफ मधेसी समुदाय के आंदोलन में सोमवार को एक भारतीय की मौत हो गई। उसकी मौत नेपाल में स्थित सीमावर्ती शहर बीरगंज में मधेसी प्रदर्शनकारियों और नेपाल पुलिस के बीच झड़प के कारण हुई थी। उसे नेपाल पुलिस की तरफ से गोली मारी गई थी। उसकी मौत के कुछ घंटे बाद प्रधानमंत्री ओली ने काठमांडू में एक कार्यक्रम में भारत की नेपाल नीति, खासकर नया संविधान लागू होने के बाद की नीति की आलोचना की।

किसी देश के खिलाफ नहीं है संविधान

नेपाल के प्रधानमंत्री ने आरोप लगाया कि भारत, मधेसी दलों को 1751 किलोमीटर लंबी भारत-नेपाल की खुली सीमा पर नाकेबंदी के लिए उकसा रहा है। उन्होंने कहा, 'आखिर भारत क्यों चार मधेसी दलों के ही पीछे खड़ा नजर आ रहा है? यह नेपाल सरकार की जिम्मेदारी है कि वह अपने देश के सभी समुदायों की बातों को सुने और उनकी शिकायतों को दूर करे।'

इसके साथ ही उन्होंने कहा कि नए संविधान को संविधान सभा के 96 फीसदी सांसदों का समर्थन हासिल हुआ है और 'यह किसी देश के खिलाफ नहीं है।'

रोजमर्रा की चीजों का संकट सामने आया

बीरगंज में भारतीय की मौत के बाद मधेसी राजनीतिक दलों ने कहा कि वे काठमांडू में सरकार के साथ वार्ता नहीं करेंगे। इन दलों ने एक बयान में कहा है कि नए हालात में सरकार के साथ बातचीत का कोई नतीजा निकलने वाला नहीं है। सीमा पर मधेसियों की नाकेबंदी की वजह से नेपाल में रोजमर्रा की चीजों तक का भारी संकट पैदा हो गया है।

इस बीच नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी की नेता और मंत्री रेखा शर्मा ने मधेसी दलों से भारतीय की मौत के मामले में भावनाओं को भड़काने से बचने को कहा है. उन्होंने कहा कि इससे सिर्फ बातचीत के लिए सकारात्मक माहौल पर असर पड़ेगा। नेपाली कांग्रेस के सांसद रामहरि खातीवाड़ा ने कहा कि बीरगंज की घटना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी हालात पर नजदीकी निगाह बनाए हुए है। जिस तरह मधेसी समूह और सरकार मामले से निपट रहे हैं, उससे काफी दिक्कतें आने वाली हैं।

PM मोदी ने की थी निंदा

प्रधानमंत्री कार्यालय ने बताया ‘पीएम ने नेपाल में पुलिस की गोलीबारी में बिहार के एक युवक के मारे जाने पर हैरत जताई और घटना की निंदा की। साथ ही विस्तृत ब्यौरा देने का आग्रह किया।' पीएम मोदी ने नेपाली नेता को आश्वासन दिया कि भारतीय पक्ष की ओर से ईंधन और आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति में कोई रूकावट नहीं होगी।

मुंबई पुलिस पर भरोसा नहीं था दिल्ली को सौंपा राजन

छोटा राजन से पूछताछ दिल्ली पुलिस के हवाले की गई है। मुंबई पुलिस के हाथ से लेकर मामला दिल्ली पुलिस को दिए जाने पर कई लोगों ने आपत्ति जताई थी। लेकिन सरकार ने दिल्ली पुलिस पर ज्यादा भरोसा दिखाया है।

इसकी एक वजह दिल्ली पुलिस का केंद्र के तहत होना भी है।

अधिकारियों ने बताया कि सरकार नहीं चाहती कि मुंबई पुलिस छोटा राजन से पूछताछ करे। राजन भारतीय सुरक्षा एजेंसियों के लिए दाऊद के खिलाफ एक प्रमुख कड़ी है। वह दाऊद के बारे में कई अहम जानकारियां दे सकता है। राजन को बुधवार को दिल्ली लाया जाएगा। इसके बाद पूछताछ का सिलसिला शुरू होगा।

यह पूछताछ 2011 में दिल्ली में एक बिजनेस मैन को फिरौती की कॉल को लेकर दर्ज हुई FIR पर आधारित होगी। 2 लोगों की टीम ने पूछताछ के लिए सभी कागजात इकट्ठे कर लिए हैं। इनमें राजन के खिलाफ 6 दूसरी FIR शामिल हैं।

दिल्ली पुलिस को मामला सौंपने पर अधिकारियों का कहना है कि भारतीय सुरक्षा एजेंसियों की नजर में मुंबई पुलिस का रिकॉर्ड अच्छा नहीं है। इसलिए केस दिल्ली पुलिस को दिया गया है।

साथ ही दिल्ली पुलिस के पास छोटा राजन और उसके गुर्गों के खिलाफ 7 मामले दर्ज हैं। पूछताछ के लिए स्पेशल सेल बनाया गया है। इस टीम में डीसीपी प्रमोद कुशवाहा, इंस्पेक्टर राहुल शामिल हैं।