Tuesday 15 December 2015

1971 भारत-पाक युद्ध : जीत के असली हीरो थे सैम मानेकशाह

1971 की जंग वो जंग थी जिसमें भारतीय फौज ने पाकिस्तान को अपनी ताकत का नजारा दिखाया। यह जंग 16 दिसंबर को पाकिस्तान को धूल चटवाने के साथ खत्म हुई।  इस लड़ाई की वजह से ही बांग्लादेश आजादी में सांस ले सका। आज के इस दिन को हम लोग विजय दिवस के रूप में याद करते हैं। यह लड़ाई भारत से नहीं थी फिर भी भारत ने इसे लड़ा, जानिए क्या थी इसके पीछे वजह। यह लड़ाई विश्व में लड़ी गईं जंगों में सबसे छोटी लड़ाई में से एक है। इसके पीछे वजह यह है कि इसमें पाकिस्तान ने 13 ही दिनों में भारत के सामने घुटने टेक दिए थे।

भारत क्यों लड़ा


यह जंग पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेश) को आजाद कराने के लिए मुक्तिवाहीनी सेना द्वारा लड़ी जा रही थी। भारत को इसमें इसलिए कूदना पड़ा क्योंकि पाकिस्तान, बांग्लादेश में रह रहे गैर मुस्लिम लोगों को निशाना बना रहा था।

क्या थी भारत की ताकत

इस जंग में भारत की तरफ से 5,00,000 सौनिकों की फौज ने हिस्सा लिया। पाकिस्तान की तरफ से टक्कर देने के लिए कुल 3,65,000 सैनिक थे। इस जंग में हक की लड़ाई लड़ने वाले मुक्तिवाहिनी के 1,75,000 सैनिक थे।

कितने सैनिक शहीद

इस भयंकर जंग में भारत और मुक्तिवाहिनी सेना के 3,843 सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए। वहीं पाकिस्तान ने इस युद्ध में अपने 9,000 सैनिक खोए।
इसके साथ ही अनुमान लगाया जाता है कि वहां पर 30 लाख के करीब मासूम लोग भी मारे गए। इसके साथ ही करीब 80 लाख लोग बांग्लादेश से भागकर भारत आ गए और यहीं शर्णार्थी बनकर रहने लगे।

जीत के असली हीरो-  सैम मानेकशाह

भारत ने जब मुक्तिवाहिनी की मदद करने का विचार किया तो आर्मी चीफ सैम मानेकशाह को उनके साथ भेजा गया। इंदिरा गांधी ने उनसे अप्रेल में युद्ध के बारे में बात की। इस वक्त सैम ने साफ कह दिया कि ले युद्ध के लिए बिल्कुल तैयार नहीं है। इसके पीछे उन्होंने वजह बताई कि भारत के 189 टैंकों में से कुल 13 टैंक जंग में ले जाने लायक हैं। इसके साथ ही उन्होंने मौसम के बारे में भी इंदिरा गांधी से बात की। सैम ने इंदिरा को बताया था कि मानसून आने की वजह से पूर्वी पाकिस्तान में बाढ़ का खतरा है जो युद्ध के लिए विपरीत परिस्थिति है।

इंदिरा ने सारी बातें ध्यान से सुनी। इसके बाद कमरे में मौजूद सब लोगों को बाहर भेज दिया और सैम को रोके रखा। इसके बाद सैम ने इस्तीफे की बात की तो इंदिरा ने उनका इस्तीफा स्वीकार नहीं किया। इसपर सैम ने कहा कि वे जंग में जीतने की गारंटी एक शर्त पर लेंगे। और शर्त यह थी कि उन्हें अपनी मर्जी से फैसले लेने दिए जाएंगे। इस बात को सुनकर इंदिरा ने उन्हें सारी पॉवर दे दी। इसके बाद दिसंबर में जो हुआ वो सबके सामने है। सैम की कुशल रणनीति की वजह से ही इस युद्ध में भारत ने पाकिस्तान के लगभग 90,000 सैनिकों को युद्ध के वक्त बंदी बना लिया था।

नहीं लिया जीत का श्रेय

पाकिस्तान के सरेंडर के वक्त प्रधानमंत्री ने उन्हें ठाका जाने के लिए कहा। इसपर सैम ने दरियादिली दिखाते हुए आर्मी कमांडर लेफटिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा को वहां भेजने की गुजारिश की।

Thursday 26 November 2015

10 देश जिन्हें माना जाता है महिलाओं के लिए 'असहिष्णु

दुनिया के लगभग हर कोने की महिलाएं किसी ना किसी तरह से प्रताड़ना का शिकार होती रहती है। इसको रोकने के लिए हर जगह की सरकार, लोग, गैर सरकारी संगठन काम करते हैं पर, यह कितना कम हो रहा है इसकी सच्चाई रोज आने वाली खबरें सामने ला देती हैं। दुनियाभर में महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों को रोकने के लिए संयुक्त राष्ट्र ने भी एक कदम उठाया हुआ है। इसमें 25 नवंबर को 'महिलाओं के विरुद्ध हिंसा खत्म करने वाला दिन' घोषित किया गया है। इस दिन पूरी दुनिया में रेप, घरेलू हिंसा और अन्य हिंसा से शिकार होने वाली महिलाओं के प्रति जागरुकता फैलाने की कोशिश की जाती है।

पर, कौन क्या काम कर रहा है हम इसपर ना जाते हुए आपको बताते हैं 10 ऐसे देशों के बारे में जहां महिलाओं के खिलाफ अत्याचार बढ़ता जा रहा है, या यूं कहें कि चरम सीमा पर है। यह लिस्ट थॉम्पसन रॉयटर्स फाउंडेशन, वर्ल्ड रिपोर्ट 2014 और फाउंडेशन फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट की ओर से जुटाए गए आंकडों के आधार पर तैयार की गई है।

10. ब्राजील

कुछ मामले में तारीफ हासिल करने के बावजूद ब्राजील के कुछ आंकड़े हैरान करते हैं। रिपोर्ट्स के मुताबिक, हर 15 सेकंड में एक महिला के ऊपर हमला होता है। हर दो घंटे में एक महिला की हत्या भी की जाती है।

9. मेक्सिको

2010-11 में 4,000 महिलाओं के गायब होने की खबर मेक्सिको में सामने आई थी। 2012 में प्रति एक लाख आबादी पर एक मर्डर भी दर्ज किया गया था। मेक्सिको का लीगल सिस्टम महिलाओं को घरेलू और यौन उत्पीड़न से पूरी तरह सुरक्षित नहीं करता। भले ही देश में यौन उत्पीड़न के लिए सजा का प्रावधान है, लेकिन ऐसा माना जाता है कि कोर्ट पुरुषों को उचित सदा नहीं देती।

8. केन्या

केन्या की बड़ी आबादी खेती पर निर्भर है। लेकिन परिवार में महिलाओं को आय का हिस्सा नहीं मिलता। देश में महिलाओं में एचआईवी रेट्स के आंकड़े भी पुरुषों के मुकाबले अधिक हैं। इसकी पीछे वजह बताई जाती है कि सेक्स लाइफ के ऊपर महिलाओं का पूरा कंट्रोल नहीं होता।

7. इजिप्ट

इजिप्ट में महिलाओं के यौन उत्पीड़न की घटना इतनी ज्यादा होती है कि कोई सामान्य विजिटर भी इसे महसूस कर सकता है। 2011 के इजिप्ट क्रांति के साथ-साथ महिलाओं के खिलाफ अपराध में इजाफा हुआ है। इजिप्ट के अदालत में महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा के मामले भी आसानी से स्वीकार नहीं किए जाते। शादी, तलाक, चाइल्ड कस्टडी और पारिवारिक संपत्ति के मामले में भी इजिप्ट में महिलाओं को उचित हक नहीं मिलते। एक रिपोर्ट के मुताबिक, जनवरी 2011 में इजिप्ट में भीड़ द्वारा 19 यौन उत्पीड़न के मामले सामने आए।

6. कोलंबिया

एक रिपोर्ट के मुताबिक, सिर्फ 2010 में कोलंबिया की 45,000 महिलाएं घरेलू हिंसा की शिकार हुईं। घरेलू हिंसा की शिकार हुई महिलाओं को आखिर में न्याय भी ठीक से नहीं मिलता। कुछ संस्थाएं महिलाओं के फ्रीडम और इंसाफ के लिए काम करती हैं, लेकिन उससे स्थिति बहुत बेहतर नहीं हुई है।

5. सोमालिया

रेप, फीमेल जेनिटल म्यूटिलेशन, बाल विवाह, शादी के बाद मृत्यु जैसी समस्याओं से सोमालिया जूझ रहा है। देश की 95 फीसदी महिलाएं फीमेल जेनिटल म्यूटिलेशन से गुजरती हैं। 4 से 11 साल की उम्र में उनका जेनिटल म्यूटिलेशन किया जाता है। सिर्फ 9 फीसदी महिलाएं हेल्दी कंडिशन में बच्चे को जन्म देती है।

4. भारत

दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र होने के बावजूद भारत में महिलाओं की स्थिति बेहतर नहीं है। न्यूयॉर्क टाइम्स के एक लेख के मुताबिक, पिछले 30 सालों में गर्भ में ही मार दिए गए लड़कियों की संख्या कई लाख है। इसकी वजह से देश में महिला और पुरुष का अनुपात भी बढ़ गया है। दूर-दराज के इलाकों के अलावा बड़े शहरों में भी महिलाओं के साथ गैंग रेप और रेप की घटनाएं अक्सर सामने आती हैं। बाल विवाह भी पूरी तरह से खत्म नहीं हुआ है। हफिंगटन पोस्ट की एक रिपोर्ट के मुताबिक, हर रोज औसतन 670 महिलाएं भारत में सेक्शुअल हरैसमेंट की शिकार होती हैं। अगर हरैसमेंट, रेप और महिलाओं की हत्या के मामलों को जोड़ दिया जाए तो ये आंकड़ा हर दिन औसतन 848 का हो जाता है। सिर्फ 2013 में देश में 34,000 महिलाओं के साथ रेप किया गया। जबकि कई महिलाओं को तो सीधे ट्रैफिकर्स को बेच दिया जाता है। भारत की राजधानी दिल्ली में महिलाओं के साथ होने वाले अपराधों की संख्या देश के औसत से करीब तीन गुना पहुंच जाता है।


3. पाकिस्तान

पाकिस्तान में कुछ संस्कृति और धार्मिक मान्यताएं महिलाओं के खिलाफ है। इसकी वजह से महिलाओं को न सिर्फ धमकियां मिलती हैं, बल्कि बाल विवाह और जबरन विवाह भी किया जाता है। कई जगहों पर महिलाओं के ऊपर पत्थर मारने और एसिड अटैक की घटनाएं भी सामने आती रही हैं। पाकिस्तान के ह्यूमन राइट कमिशन के मुताबिक हर साल करीब 1,000 लड़कियों की इज्जत के नाम पर हत्या कर दी जाती है और करीब 90 फीसदी पाकिस्तानी महिलाएं घरेलू हिंसा की शिकार होती हैं।


2. डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कॉन्गो

कॉन्गो को जेंडर वॉयलेंस के लिए सबसे खराब देशों में एक कहा जाता है। अमेरिकन जर्नल ऑफ पब्लिक हेल्थ के मुताबिक, हर दिन 1150 औरतों का यहां रेप किया जाता है। देश में महिलाओं के स्वास्थ्य का हाल भी बेहद बुरा है। करीब 57 फीसदी प्रेग्नेंट महिलाएं एनिमिया से पीड़ित रहती हैं।

1. अफगानिस्तान

अफगानिस्तान को महिलाओं के साथ होने वाले अपराध में सबसे ऊपर रखा जाता है। यहां निरक्षर महिलाओं की संख्या 87 फीसदी है। जबकि 70 से 80 फीसदी महिलाओं की जबरन शादी की जाती है। 54 फीसदी महिलाओं की शादी 15 से 19 की उम्र में ही हो जाती है। इसके अलावा भारी संख्या में महिलाएं घरेलू हिंसा की शिकार भी होती हैं।

Sunday 15 November 2015

PMO से दरख्वास्त - खत्म की जाए IAS लॉबी

सीनियर गवर्नमेंट पोस्ट पर IAS के प्रभुत्व को खत्म करने के लिए बाकी ग्रुप ए सविर्सेज ने एक याचिका दायर की है। इसमें उन्होंने कहा है कि प्रधानमंत्री कार्यालय में साल 1995 के बाद से IAS लॉबी का दबदबा रहा है। इसके साथ उन्होंने कहा कि ज्वॉइंट सेक्रेट्री पदों पर सबसे ज्यादा भर्तियां IAS से होती हैं। 

IAS की भर्ती को अच्छे ग्रेड की वजह से हरी झंडी मिल जाती है, जिससे ग्रुप ए की बाकी सेवाओं के कर्मचारियों के साथ पक्षपात होता है। सरकारी पदों में IAS का दबदबा ज्वाइंट सेक्रेट्री पद से ही देखने को मिल जाता है। साल 1972 में सेक्रेट्री की 45 पोस्ट्स में 30 IAS अधिकारी से थे। जबकि 15 अन्य ग्रुप ए सर्विसेज से शामिल किए गए थे। वहीं, साल 1984 में 36 IAS और 25 अन्य ग्रुप ए सर्विसेज से थे।

बाकी ग्रुप ए सर्विसेज को आस

अन्य ग्रुप ए सर्विसेज उम्मीद है कि प्रधानमंत्री कार्यालय के स्पेशलाइजेशन को ज्यादा जोर देने पर यह दबदबा खत्म हो सकेगा। 36 अन्य ग्रुप ए सर्विसेज ने एक याचिका में 7वें वेतन आयोग को IAS के प्रभुत्व को खत्म करने और मेरिट को एक मौका देने के लिए कहा है।

कायम रही लॉबी


भारत सरकार के टॉप पोस्ट में IAS का प्रभुत्व आजादी के बाद घटा, लेकिन 1995 के बाद IAS लॉबी ने दोबारा अपने दबदबे को कायम करते हुए 92 सेक्रेट्री की पोट्स में 71 पोस्ट हासिल की।

ये था कारण

सरकारी विभागों में IAS के प्रभुत्व का कारण लिस्ट में नाम लिखने वालों और सेलेक्शन अथॉरिटीज का था। यहां तक कि डिपार्टमेंट ऑफ पर्सनल एंड ट्रेनिंग (DoPT) और कैबिनेट सेकेट्रिएट पर भी IAS अफसरों का प्रभुत्व का था।

IAS के दिन बहुरे

बीते दशकों में IAS अधिकारियों के लिए हालात अच्छे हुए हैं। केंद्र सरकार में अभी 91 सेक्रेट्री पोस्ट पर 73 IAS से हैं। 11 साइंटिस्ट हैं और बाकी के सात अन्य ग्रुप ए सेवाओं से हैं। इनमें IPS, IRS, IAAS या IRAS शामिल हैं।

JS से दबदबे की शुरुआत

IAS के प्रभुत्व की शुरुआत सीधे ज्वॉइंट सेकेट्री (JS) लेवल से होती है। ग्रुप ए सेवाओं की 7वें वेतन आयोग को सौंपी गई याचिका के मुताबिक वर्तमान में लगभग 75 फीसदी ज्वाइंट सेक्रेट्री, 85 फीसदी एडिशनल सेक्रेट्रीज और 90 फीसदी से ज्यादा सेक्रेट्रीज IAS से शामिल किए गए हैं।

इंजीनियर-डॉक्टर भी हिस्सा

साल दर साल नौकरशाही के हालात में तब्दीलियां हुई हैं। अब, ज्यादातर इंजीनियर, डॉक्टर और MBA ऑल इंडिया सर्विसेज (IAS, IPS और IFS) और अन्य ग्रुप ए सर्विसेज में शामिल हो रहे हैं। IAS  के लिए कोई अलग से परीक्षा नहीं होती है। जिनका भी ज्यादा ग्रेड होता है, उन्हें इस सेवा में शामिल किया जाता है।

PMO का टैलेंट पर जोर 

प्रधानमंत्री कार्यालय से मिली प्रतिक्रिया के आधार पर सूत्रों ने बताया कि पीएमओ सभी सेवाओं में बराबरी पर जोर देगा और सीनियर पोस्ट के लिए टैलेंट को प्राथमिकता देगा। पीएमओ ने DoPT को सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है कि ग्रुप ए सेवाओं के सभी अफसरों को समय रहते लिस्ट में शामिल किया जाए।

Tuesday 10 November 2015

शायद बिहार में नीतीश और लालू यादव के ऐसे अच्छे दिन न आये होते !

दिल्ली में नरेन्द्र मोदी के कौशल की पहली परीक्षा अब है! उनके राजनीतिक जीवन की शायद अब तक की सबसे बड़ी चुनौती उनके सामने है! और शायद पहली भी! इस मामले में मोदी वाक़ई भाग्यशाली रहे हैं. मुझे नहीं याद पड़ता कि इससे पहले कभी उनके सामने कोई चुनौती आयी भी हो!

गुजरात दंगों को लेकर वह संकट में ज़रूर घिरे थे. लेकिन वह कोई राजनीतिक चुनौती नहीं थी, जिससे उन्हें निबटना हो. तब पार्टी के 'लौहपुरुष' ने रक्षा कवच बन कर उन्हें बचा लिया था! उसके बाद से तो कभी उनके सामने कोई मामूली-सा संकट भी नहीं आया. गुजरात में वह जब तक रहे, चक्रवर्ती सम्राट की तरह रहे. अजेय! शत्रु तो दूर, उनकी मर्ज़ी के बिना कहीं कोई पत्ता भी नहीं खड़क सकता था. तो फिर चुनौती भला कहाँ से आती? ऐसा कोई दरवाज़ा कहीं खुला छूटा ही नहीं था!

अहमदाबाद और दिल्ली का फ़र्क़!

लोकसभा चुनाव भी उन्होंने आराम-से जीत लिया. जनता काँग्रेस से पक चुकी थी. मोदी के पास विकास के बड़े-बड़े आलीशान, मनोहारी प्रोजेक्ट थे, सपनों के परीलोक थे, जादुई चिराग़ों की मोहिनी दमक थी. जनता ने उन्हें चुन लिया. अब वह सारे विपक्ष को बौना और मरघिल्ला कर चुके थे. दूर-दूर तक फिर कोई चुनौती नहीं दिख रही थी! सब कुछ कंट्रोल में था! पूरी दुनिया 'नसीबवाले' का लोहा मान रही थी!

लेकिन अहमदाबाद और दिल्ली में बड़ा फ़र्क़ है, यह दिल्ली में अरविन्द केजरीवाल ने नौ महीने में ही बता दिया. उस हार को किसी ने चुनौती माना ही नहीं. लेकिन उसके नौ महीने बाद अब बिहार में मिली वैसी ही करारी हार को वही अनदेखा करेगा, जो या तो मूर्ख राजनीतिक हो या अहंकार में अन्धा! तब शायद नीतीश-लालू के 'अच्छे दिन' नहीं आये होते! मोदी अहंकारी तो हैं, लेकिन उनसे ऐसी मूर्खता की उम्मीद नहीं कि उन्हें राजनीति की ज़मीनी सच्चाइयाँ दिखना बन्द हो जायें! वैसे उन्हें शायद अब एहसास हो रहा हो कि दिल्ली में 'रामज़ादे बनाम हरामज़ादे' का नतीजा देख लेने के बाद अगर उन्होंने चाबुक कस दी होती तो शायद बिहार में नीतीश और लालू यादव के ऐसे अच्छे दिन न आये होते!

मोदी हैं तो बड़े समझदार! क़ायदे से तो उन्हें तभी पढ़ लेना चाहिए था कि देश की जनता को 'रामज़ादे' जैसे मुहावरे नहीं चाहिए. अब यह पता नहीं कि वह पढ़ नहीं पाये या पढ़ कर भी कुछ कर नहीं पाये! क्योंकि तब से लगातार वह मुहावरे जारी हैं और हर तरफ़ से बार-बार कोंचे जाने के बावजूद मोदी कभी टस से मस नहीं हुए! तो कुछ तो बात ज़रूर होगी!

मोदी क्या घृणा-भोंपुओं को बन्द करा पायेंगे?

तो अब बिहार की हार (Bihar Election 2015) के बाद मोदी की सबसे पहली चुनौती यही है कि क्या वह घृणा-भोंपुओं को बन्द करा पायेंगे? संघ और 'परिवार' क्या अपने एजेंडे को ठंडे बस्ते में डालेगा? मुश्किल लगता है! क्यों? आगे देखेंगे.

नरेन्द्र मोदी की दूसरी बड़ी चुनौती है उनकी अपनी ख़ुद की पैकेजिंग, ब्राँड मोदी, जिसने लोगों के मन में करिश्माई उम्मीदें पैदा कीं और इसीलिए लोगों को अब लगता है कि वे बुरी तरह ठगे गये हैं! मोदी अब कह रहे हैं कि विकास कोई फ़र्राटा दौड़ नहीं, बल्कि लम्बी मैराथन है. धीरे-धीरे होगा, समय लगेगा. लेकिन सच यह है कि मोदी जी ने उम्मीद तो 'फ़ार्मूला वन' जैसी रफ़्तार वाले विकास की जगायी थी. विकास का चक्का तो अभी जाम है. अब मोदी कैसे इसको गति दे पाते हैं और कैसे लोगों को समझा पाते हैं कि वे बेवक़ूफ़ नहीं बनाये गये हैं, यह वाक़ई एक कठिन और गम्भीर चुनौती है. इसे तो उन्हें तुरन्त हाथ में लेना होगा!

अहंकार और अड़ियल ज़िद्दीपन

लेकिन यह होगा कैसे? बिहार के बाद विपक्ष का हौसला तो बढ़ चुका है. उसे साथ लिये बिना बहुत-से क़ानून अटके पड़े रहेंगे. नरेन्द्र मोदी को अपना अहंकार छोड़ना होगा. राहुल गाँधी उन्हें पहले ही यह नसीहत दे चुके हैं!

बात सिर्फ़ अहंकार की ही नहीं, ज़िद्दीपन की भी है. मोदी को समझना चाहिए कि कई छोटी-छोटी बातें मिल कर बहुत बड़ी हो जाती हैं. वैसे ही, जैसे बूँद-बूँद से सागर भरता है. तीस्ता सीतलवाड और ग्रीनपीस से किस तरह और क्यों खुन्दक निकाली जा रही है, यह जनता समझती है और वह यह भी समझती है कि यह वह 'गवर्नेन्स' नहीं है, जिसकी शान में मोदी रोज़ क़सीदे पढ़ते हैं. लोगों को यह बात भी चुभती है जब न्यायपालिका को सरकारी घुट्टी पिलाये जाने की कोशिशें होती हैं. पहले तो कभी न्यायपालिका से ऐसी भाषा में संवाद नहीं किया गया! तो अगली चुनौती यह है कि क्या यह अड़ियल ज़िद की संस्कृति बदलेगी?

पार्टी में भी बढ़ सकती हैं चुनौतियाँ

राजनीतिक मोर्चे पर भी चुनौतियाँ कम नहीं हैं. अब तक अमित शाह के रूप में पार्टी पर नरेन्द्र मोदी की पूरी पकड़ थी. अमित शाह को धुरन्धर चुनाव-विजेता रणनीतिकार के तौर पर पेश किया गया था. शुरू के चुनाव उन्होंने जीते भी. लेकिन दिल्ली और बिहार के दो चुनाव लगातार बुरी तरह हारने के बाद उन पर सवाल उठेंगे ही. अगले साल बीजेपी के नये अध्यक्ष का चुनाव होना है. क्या अमित शाह को दूसरी बार यह कुर्सी मिलेगी या पार्टी को कोई नया अध्यक्ष मिलेगा, यह बड़ा सवाल है.

फिर अगले साल असम और पश्चिम बंगाल में चुनाव होने हैं. असम में तो काँग्रेस की लुँजपुँज हालत के कारण बीजेपी के लिए लड़ाई शायद उतनी कठिन न हो, लेकिन अब इसकी उम्मीद कम है कि पश्चिम बंगाल में बीजेपी कोई प्रभावी प्रदर्शन कर सकती है.

विकास का एजेंडा या संघ का एजेंडा?

दिक़्क़त यह है कि विकास की कोई रुपहली कहानी अभी है नहीं और शायद जल्दी हो भी न. विदेशी निवेशकों ने भी मोदी से जिस तेज़ी की उम्मीद लगायी थी, उसका कहीं अता-पता नहीं है. धार्मिक असहिष्णुता से लगातार कसैले हुए माहौल से बिदक कर कुछ निवेशक तो यहाँ से पैसा निकाल कर ही जा चुके हैं, जो आने को सोच रहे थे, वह फ़िलहाल हालात का जायज़ा ले रहे हैं. विपक्ष के असहयोग, ख़राब घरेलू हालात और दुनिया भर में डगमग अर्थव्यवस्था के कारण यहाँ विकास कैसे रफ़्तार पकड़े, यह बड़ा सवाल है.

उधर संघ के अपने लक्ष्य हैं. उसकी अपनी टाइमलाइन है. अस्सी के दशक में उसने राम जन्मभूमि आन्दोलन के ज़रिये हिन्दुत्ववाद को देश की राजनीति के केन्द्र में पहुँचाया था. संघ के हिसाब से अब समय इसे और आगे ले जाने का है. संघ की रणनीति इस बार अलग है. कोई बड़ा आन्दोलन कर पूरी ताक़त उसमें झोंकने और दुनिया का ध्यान उस ओर आकर्षित करने के बजाय संघ अब बहुत छोटे-छोटे मुद्दों से स्थानीय स्तरों पर हिन्दुत्व की चिनगारी धीरे-धीरे सुलगाये रखना चाहता है. पिछले अठारह महीनों में यही हुआ है. 'लव जिहाद' और घर-वापसी के बाद गोमांस का मुद्दा इसी रणनीति के तहत उछला है. सवाल यह है कि क्या संघ अब बिहार की हार से सबक़ लेकर अपने अभियान को रोक देगा? मुझे तो नहीं लगता!

Monday 9 November 2015

वर्ल्ड बैंक की रिपोर्टः अगले 15 साल में होंगे 10 करोड़ लोग गरीब

अगले 15 सालों में गरीबों की संख्या 10 करोड़ और बढ़ जाएगी। वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट में ये कहा गया है। क्लाइमेट चेंज इसकी मुख्य वजह होगी। रिपोर्ट में बताया गया कि ग्लोबल वार्मिंग और उसके प्रभाव के कारण गरीबी खत्म करना बहुत मुश्किल है।

वल्ड बैंक के प्रेसिडेंट जिम योंग किम ने कहा कि क्लाइमेट चेंज सबसे ज्यादा गरीबों को प्रभावित करती है। हमारा लिए लाखों लोगों को गरीबी से बचाना एक चुनौती है। रिपोर्ट में बताया गया कि गरीब अमीरों के मुकाबले क्लाइमेट में आ रहे बदलाव के चपेट में जल्दी आ जाते है। उनके पास अच्छे से बना घर नहीं होता। क्लाइमेट चेंज का जमीनों पर बुरा असर पड़ता है। सबसे बड़ी बात ये है कि इन्हें लॉस का कोई रिफंड नहीं मिलता है।

अभी से लेकर 2030 तक अगर कुछ नीतियां अपनाई जाएं तो ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव को कम किया जा सकता है। रिपोर्ट में बताया गया कि 2030 तक ग्लोबल वार्मिंग इतना बढ़ जाएगा कि लोग बर्दाश्त नहीं कर पाएंगे।

यह रिपोर्ट 30 नवंबर से 11 दिसंबर तक चलने वाले यूएन क्लाइमेट समिट में पेश किया जाएगा। समिट में ग्लोबल वार्मिंग की नई चुनौतियों पर चर्चा होगी।

Thursday 5 November 2015

17 साल की उम्र में हासिल की दो डिग्रियां

कैलिफोर्निया के 17 साल के मोशे काई कावलीन के पास दो डिग्रियां हैं। कावलीन ने 11 साल की उम्र में कम्युनिटी कॉलेज से ग्रेजुएशन किया था। उसके बाद 15 साल की उम्र में लॉस एंजिल्स के यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया से मैथ में बैचलर्स की डिग्री हासिल की।

इस साल उन्होंने ब्रांडेस यूनिवर्सिटी से साइबर सिक्योरिटी में मास्टर्स करने के लिए ऑनलाइन क्लासेज लेना भी शुरू कर दिया है। इसके अलावा उन्होंने एक किताब भी लिखी है। इसमें उन्होंने अपने एक्सपीरियंस शेयर किए हैं। किताब में उन्होंने दूसरों से सुनी कहानियों को भी शामिल किया है। कावलीन का कहना है कि वह इस साल के आखिर तक पायलट का लाइसेंस लेने के लिए भी प्लान बना रहा है।

कावलीन की मां ताईवान और पापा ब्राज़ील से है। इनका कहना है कि कावलीन ने पढ़ाई बहुत जल्दी पूरी कर ली। वहीं कावलीन कहता है, 'मैं बहुत साधारण हूं। मेरा केस कोई खास नहीं है। यह बस पेरेंटिंग, मोटिवेशन और इंसपिरेशन का कॉम्बिनेशन है। एडवर्ड्स में नासा के आर्मस्ट्रांग फ्लाइट रिसर्च सेंटर में काम करने के दौरान मैं अपने आप को लोगों से कमपेयर करने लगा हूं। मैं कोशिश करता हूं कि अपना बेस्ट दूं'।

मैथ्स के प्रोफेसर डैनियल जज कहते हैं, 'मुझे लगता है ज्यादातर लोग सोचते हैं कि कावलीन जीनियस है। यह स्वाभाविक रूप से आता है। उन्होंने कहा कि वास्तव में उसने बहुत मेहनत की है। शायद ही किसी स्टूडेंट ने इतनी मेहनत की हो'।

कावलीन ने बताया, 'मुझे विश्वास नहीं हुआ कि जिस नासा ने उम्र की वजह से मुझे रिजेक्ट किया था उसने मुझे काम करने को बुलाया है'। नासा में कावलीन के बॉस और मेंटर अर्टीगाल का कहना है कि उनके प्रोजेक्ट के लिए कावलीन बिल्कुल परफेक्ट है। उन्हें एक ऐसे इंटर्न की जरूरत थी जिसे सॉफ्टवेयर मैथ्स अलॉगरिदम की समझ हो, साथ ही एक पायलट की जरूरत भी थी।

अर्टीगाल कहते है कि ऑफिस में वह बहुत शांत तरीके से काम करते हैं और उनके पास बहुत अचछा ह्यूमर है। ब्रांडैस यूनिवर्सिटी से मास्टर्स करने के बाद वह मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में बिजनेस में मास्टर करना चाहते है। वह साइबर सिक्योरिटी कंपनी भी शुरू करना चाहते है। फिलहाल वह अभी अपने 18वें जन्मदिन का इंतजार कर रहे है ताकि वह ड्राइवर का लाइसेंस हासिल कर पाए।

शेर तो शेर होता है, उसका कोई धर्म नहीं होता

क्या ऐसा हो सकता है कि अंडरवर्ल्ड का कोई धर्म हो और वे पैसे की वसूली से लेकर खून तक करने के पहले धर्म देखते हों?  किसी डॉन के बारे में सुना है कि वह अपने धर्म के लोगों को नहीं मारता हो और दूसरे धर्म के लोगों से दुश्मनी मोल लेता हो? ऐसा शायद कल्पना या फिल्मों में हो सकता है। डॉन या बड़े अपराधी का धर्म से कोई लेना-देना नहीं होता और वे पैसे के मामले में किसी के नहीं होते। मंदिर या मस्जिद से उनका नाता सिर्फ रस्मी होता है। कोई डॉन मंदिर में इसलिए मत्था टेकता है कि वह हिन्दू धर्म से जुड़ा है तो कोई मस्जिद में नमाज़ इसलिए पढ़ता है कि वह मुसलमान है और इस तरह से वह अपने अनुयायियों की तादाद बढ़ा सकता है। धर्म या मज़हब उनके लिए महज आस्था का सवाल है और उससे वे जुड़े हुए हैं।

अब अंडरवर्ल्ड डॉन छोटा राजन की गिरफ्तारी के बाद कई नेता और धर्म के ठेकेदार उसे हिन्दू धर्म का समर्थक बता रहे हैं और कह रहे हैं कि वह हिन्दू रक्षक है। साध्वी प्राची कह रही हैं कि वह हिंदू शेर है और वह आतंकवाद के खिलाफ लड़ा। उसे मौका मिले तो पाकिस्तान में छिपे दाऊद की गर्दन पकड़ सकता है। ऐसा लगता है कि साध्वी और उन जैसे लोगों को यह पता नहीं कि छोटा राजन ही दरअसल वह मुजरिम है जिसने दाऊद इब्राहिम के पैर पसारने में मदद की थी। उसकी लोमड़ी जैसी बुद्धि और शूटर्स के गिरोह ने दाऊद को मुंबई में ताकत दी थी। ऐसी दलील देने वालों को यह भी मालूम नहीं है कि छोटा राजन दाऊद इब्राहिम का जिसे आतंकवादी बताया जाता है, दायां हाथ था। वह उसके सभी गुनाहों का साथी था और खुले आम वसूली करता था। उस पर मुंबई में 17 लोगों की हत्या का आरोप है जिसमें ज्यादातर हिन्दू ही थे। पत्रकार जे डे की हत्या राजन ने ही करवाई थी, यह बात सभी जानते हैं। ऐसे न जाने कितने नाम हैं।

छोटा राजन तो 1989 में दाऊद के पास दुबई चला गया था जहां दोनों में काफी मतभेद हो गए और वे एक दूसरे के खून के प्यासे हो गए। उसके बाद से राजन का रास्ता बदल गया लेकिन उसने अपराध और वसूली का काम नहीं छोड़ा। अगर वह देशभक्त या धर्म प्रेमी होता तो भारत आकर सरेंडर कर देता। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। वह बाहर के देशों से ऑपरेट करता रहा और अपराध का अपना साम्राज्य चलाता रहा।

ऐसा सिर्फ हमारे देश में हो सकता है कि धर्म के आधार पर किसी माफिया डॉन को महिमा मंडित किया जाए। सिर्फ इसलिए कि वह हिन्दू है और दाऊद के गुर्गों को मरवाने में बड़ी भूमिका निभाई, उसे देशभक्त या महान नहीं कहा जा सकता है। यह तो देशभक्ति का अपमान होगा। एक बड़ा अपराधी कई तरह के रंग बदलता है और लोग उससे धोखा खा जाते हैं। इस मामले में भी ऐसा हो रहा है। अपराधी का धर्म उसके चरित्र से जुड़ा नहीं होता। वैसे भी शेरों का कोई धर्म नहीं होता और शेर महज शेर होता है। उसे हिन्दू या मुसलमान की श्रेणी में डालना हास्यास्पद है।