Tuesday 15 December 2015

1971 भारत-पाक युद्ध : जीत के असली हीरो थे सैम मानेकशाह

1971 की जंग वो जंग थी जिसमें भारतीय फौज ने पाकिस्तान को अपनी ताकत का नजारा दिखाया। यह जंग 16 दिसंबर को पाकिस्तान को धूल चटवाने के साथ खत्म हुई।  इस लड़ाई की वजह से ही बांग्लादेश आजादी में सांस ले सका। आज के इस दिन को हम लोग विजय दिवस के रूप में याद करते हैं। यह लड़ाई भारत से नहीं थी फिर भी भारत ने इसे लड़ा, जानिए क्या थी इसके पीछे वजह। यह लड़ाई विश्व में लड़ी गईं जंगों में सबसे छोटी लड़ाई में से एक है। इसके पीछे वजह यह है कि इसमें पाकिस्तान ने 13 ही दिनों में भारत के सामने घुटने टेक दिए थे।

भारत क्यों लड़ा


यह जंग पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेश) को आजाद कराने के लिए मुक्तिवाहीनी सेना द्वारा लड़ी जा रही थी। भारत को इसमें इसलिए कूदना पड़ा क्योंकि पाकिस्तान, बांग्लादेश में रह रहे गैर मुस्लिम लोगों को निशाना बना रहा था।

क्या थी भारत की ताकत

इस जंग में भारत की तरफ से 5,00,000 सौनिकों की फौज ने हिस्सा लिया। पाकिस्तान की तरफ से टक्कर देने के लिए कुल 3,65,000 सैनिक थे। इस जंग में हक की लड़ाई लड़ने वाले मुक्तिवाहिनी के 1,75,000 सैनिक थे।

कितने सैनिक शहीद

इस भयंकर जंग में भारत और मुक्तिवाहिनी सेना के 3,843 सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए। वहीं पाकिस्तान ने इस युद्ध में अपने 9,000 सैनिक खोए।
इसके साथ ही अनुमान लगाया जाता है कि वहां पर 30 लाख के करीब मासूम लोग भी मारे गए। इसके साथ ही करीब 80 लाख लोग बांग्लादेश से भागकर भारत आ गए और यहीं शर्णार्थी बनकर रहने लगे।

जीत के असली हीरो-  सैम मानेकशाह

भारत ने जब मुक्तिवाहिनी की मदद करने का विचार किया तो आर्मी चीफ सैम मानेकशाह को उनके साथ भेजा गया। इंदिरा गांधी ने उनसे अप्रेल में युद्ध के बारे में बात की। इस वक्त सैम ने साफ कह दिया कि ले युद्ध के लिए बिल्कुल तैयार नहीं है। इसके पीछे उन्होंने वजह बताई कि भारत के 189 टैंकों में से कुल 13 टैंक जंग में ले जाने लायक हैं। इसके साथ ही उन्होंने मौसम के बारे में भी इंदिरा गांधी से बात की। सैम ने इंदिरा को बताया था कि मानसून आने की वजह से पूर्वी पाकिस्तान में बाढ़ का खतरा है जो युद्ध के लिए विपरीत परिस्थिति है।

इंदिरा ने सारी बातें ध्यान से सुनी। इसके बाद कमरे में मौजूद सब लोगों को बाहर भेज दिया और सैम को रोके रखा। इसके बाद सैम ने इस्तीफे की बात की तो इंदिरा ने उनका इस्तीफा स्वीकार नहीं किया। इसपर सैम ने कहा कि वे जंग में जीतने की गारंटी एक शर्त पर लेंगे। और शर्त यह थी कि उन्हें अपनी मर्जी से फैसले लेने दिए जाएंगे। इस बात को सुनकर इंदिरा ने उन्हें सारी पॉवर दे दी। इसके बाद दिसंबर में जो हुआ वो सबके सामने है। सैम की कुशल रणनीति की वजह से ही इस युद्ध में भारत ने पाकिस्तान के लगभग 90,000 सैनिकों को युद्ध के वक्त बंदी बना लिया था।

नहीं लिया जीत का श्रेय

पाकिस्तान के सरेंडर के वक्त प्रधानमंत्री ने उन्हें ठाका जाने के लिए कहा। इसपर सैम ने दरियादिली दिखाते हुए आर्मी कमांडर लेफटिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा को वहां भेजने की गुजारिश की।

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